गुजरात सरकार तो दबाव में थी, चुनाव आयोग आप भी ? IPS अफसरो की पोस्टिंग पर फैसला नहीं लेने से चुनाव आयोग की स्वतंत्र और निष्पक्ष छवि पर उठ रहे है सवाल
चुनाव आयोग यदि देश के अन्य राज्यों में कलेक्टर-एसपी के तबादलों में तुरंत कारवाही कर शकता है तो फिर गुजरात में महीनो से लंबित दस से ज्यादा IPS अधिकारियों की पोस्टिंग में देरी क्यों हो रही है ?
WND Network.New Delhi : समूचे भारत में अब तक के चुनाव इतिहास में जो नहीं हुआ वह गुजरात मे IPS पुलिस अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग के मामले में देखने को मिल रहा है. लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले चुनाव आयोग के कई नोटिस के बावजूद जब गुजरात सरकार ने आईपीएस अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के मुद्दे पर गंभीरता नहीं दिखाई तो लग रहा था कि चुनाव आयोग हजरत की सरकार को तगड़ा झटका या फटकार लगा सकता है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। गुजरात सरकार ने चुनाव की तारीखों का एलान होने तक और उस के बाद भी जिस तरह से पुलिस अधिकारिओ को बदला नहीं उस से तो अब यही लग रहा है जैसे भाजपा की गुजरात सरकार को मानो चुनाव आयोग का कोई खौफ ही नहीं। आख़िरकार जब चुनाव की तारीख़ों की घोषणा हुई तब ऐसा लगा कि शायद इलेक्शन कमिशन चुनाव प्रक्रिया के तहत प्रशासन की बागडोर अपने हाथ में ले लेगा और आईपीएस तबादलों से दूर भाग रही गुजरात सरकार का काम आसान कर देगा। लेकिन स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की छाप और एक स्वायत्त संवैधानिक संस्था रूप में जानने वाले चुनाव आयोग भी गुजरात सरकार की तरह IPS की पोस्टिंग को लेकर अब तक कोई फैसला नहीं ले सका. देश के अन्य राज्यों में कलेक्टर या एसपी के ट्रांसफर पोस्टिंग पर चुनाव आयोग तेजी से फैसले ले रहा है, लेकिन गुजरात में पुलिस अधिकारियों के ट्रांसफर पर वह फैसला नहीं ले सका. और शायद अन्य बातो के साथ साथ यह मामला भी ऐसा है जिस से चुनाव आयोग की छवि को धक्का लगा है।
जब केंद्र की नरेंद्र भाई मोदी सरकार ने चुनाव आयोग में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर कानून लाकर नियुक्ति का अधिकार सत्तारूढ़ दल के पास रखने का फैंसला किया तब की विपक्ष उनकी जम कर आलोचना की थी। और उस वक्त ऐसा लग रहा था कि शायद विपक्ष झूठा हंगामा कर रहा है। लेकिन उसके बाद जिस तरह से दो-दो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की गई और जिस तरह से चुनाव आयोग गुजरात में राज्य सरकार की तरह पुलिस अधिकारियों के तबादले और पोस्टिंग समेत अन्य मामलों में एक राजनीतिक दल जैसा ही रवैया दिखा रहा है, तब ऐसा लगने लगा है की शायद विपक्ष के आरोप गलत नहीं थे। मान लीजिए गुजरात सरकार IPS के तबादले एवं पोस्टिंग को लेकर दबाव में थी या तो वो जानबूझ कर मामले से पल्ला झाड़ रही थी लेकिन भारत के निर्वाचन आयोग किस दबाव के चले पोस्टिंग का मसला सुलझा नहीं पा रहा ये बात अब चर्चा का विषय बन गई है। चुनाव प्रक्रिया के दौरान कानून और व्यवस्था का मुद्दा महत्वपूर्ण होता है लेकिन ऐसा लग रहा है चुनाव आयोग शायद गुजरात में पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति के संबंध में किसी के संकेत का इंतज़ार कर रहा है।
बंगाल समेत के विपक्षी पार्टी के राज्यों में सक्रिय आयोग को गुजरात में कया हो जाता है ? : जब चुनाव आयोग ने बंगाल के डीजीपी को हटाया और अन्य राज्यों में तबादले और पोस्टिंग की तब लगा कि आयोग देस के अन्य राज्यों में भी चुनाव की आचार संहिता और कानूनों का पालन करेगा। बंगाल ही नहीं, दो दिन पहले चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में आठ कलेक्टर और 12 एसपी को बदल दिया है। लेकिन इलेक्शन कमिशन ऑफ़ इण्डिया शायद गुजरात में IPS के पोस्टिंग को लेकर किसी के मार्गदर्शन के इंतजार में नजर आ रहा हैं। लेकिन अब यह चर्चा का विषय बन गया है कि, जब बात गुजरात की हो तो ही चुनावआयोग को क्यों सांप सूंघ जाता है ?
करीब करीब आधे गुजरात में आईपीएस की पोस्टिंग लटकी हुई है ! : गुजरात के दूसरे सबसे बड़े शहर सूरत में दो महीने से ज्यादा समय से पुलिस कमिश्नर का पद खाली है। इसी तरह सूरत रेंज में भी कोई पोस्टिंग नहीं है। इतना ही नहीं बल्कि चार जिलों में एसपी और सूरत समेत गुजरात पुलिस के तीन रेंज में सीनियरआईपीएस का पद चार्ज पर है। गुजरात पुलिस में एक रेंज में तीन से चार जिले होते हैं। गुजरात के सबसे बड़े जिला कच्छ को जोड़ने वाली बॉर्डर रेंज में तो तीन जिले ऐसे है जो देस की अंतर्राष्ट्रीय सीमा साझा करते हैं। इस प्रकार, इस तथ्य के बावजूद कि चुनाव के दौरान कानून और व्यवस्था एक महत्वपूर्ण कारक होता है, केवल अपने चहिते पुलिस अधिकारिओ को मन चाही पोस्टिंग देने के चक्कर में कानून और चुनाव के मार्गदर्शक सिद्धांतो को ताक पर रख देना कितना उचित है ?