Election Commissioner : यह तीनों (चुनाव आयुक्त ) गांधी जी के तीन बंदर नहीं हैं, क्योंकि ये देख, सुन और बोल भी सकते हैं, लेकिन कर कुछ नहीं रहे हैं !

भारतीय निर्वाचन आयोग ने विपक्ष के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करते हुए सत्तारूढ़ दल भाजपा के खिलाफ शिकायतों में पक्षपातपूर्ण रवैया दिखाया है, जिससे आयोग की स्वतंत्र माने जाने वाली छवि खराब हो रही है। प्रधानमंत्री के नफ़रती बयान के ख़िलाफ़ 17000 से अधिक नागरिक ने आयोग को पत्र लिखे है।

Election Commissioner : यह तीनों (चुनाव आयुक्त ) गांधी जी के तीन बंदर नहीं हैं, क्योंकि ये देख, सुन और बोल भी सकते हैं, लेकिन कर कुछ नहीं रहे हैं !

WND Network.New Delhi : जब चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने बहुमत के बल पर पलट दिया, तो देश में लोगों को संदेह हुआ था कि क्या सरकार द्वारा नियुक्त चुनाव आयुक्त प्रधानमंत्री या उनके खिलाफ कार्रवाई करेंगे ? हाल फिलहाल वो आशंकाएं सही नजर आ रही हैं। इस की वजह भी है। प्रधानमंत्री मोदी के (PM Narendra Modi)द्वारा राजस्थान की चुनावी सभा में पूर्व  प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नाम से दिए गए जुठे और नफ़रती बयान के ख़िलाफ़ 17000 से अधिक नागरिक ने आयोग को (Elections Commission) पत्र लिखे है। केवल इतना ही नहीं धर्म के नाम पर वोट मांगने पर कानूनन मना होने के बाववजुद मोदी समेत अमित शाह और भाजपा के नेताओ द्वारा खुले आम राम मंदिर के नाम पर वोट मांगे जा रहे है पर चुनाव आयोग ने अब तक कोई कार्यवाही नहीं की है। शायद इसी वजह से चुनाव आयोग ने यह तीनो सर्वोच्च अधिकारिओ को गाँधी जी के तीन बन्दर के जैसा नहीं कहा जा रहा है।  क्यों की यह तीनो चुनाव आयुक्त तो देख, सुन और बोल भी सकते हैं, फिर भी कोई कार्यवाही नहीं कर रहे है।   

अभी तक विपक्ष की ओर से जब भी चुनाव आयोग के सामने सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के खिलाफ शिकायत की जाती थी तो कई बार ऐसा लगता था कि, विपक्ष शायद जान बूझकरहंगामा कर रहा है।  लेकिन जब राजस्थान के बांसवाड़ा में एक चुनावी जनसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुस्लिमों पर निशाना साधते हुए कहा कि, अगर विपक्षी गठबंधन सत्ता में आया तो जनता की मेहनत की कमाई को 'घुसपैठियों' और 'ज़्यादा बच्चे पैदा करने वालों' को दे दिया जाएगा। मोदी के इस आपत्तिजनक बयान को लेकर विपक्ष समेत 17000 से अधिक नागरिक ने आयोग को पत्र लिखे है फिर भी चुनाव आयोग मानो सोया हुआ है। और शायद यही वजह भी है की, अब लोगो को सुप्रीम कोर्ट की आयुक्तों की पसंदगी को लेकर की गई वह बात याद आ रही है, जिस में कहा गया था की चुनाव आयुक्त तो ऐसा होना चाहिए जो प्रधान मंत्री के खिलाफ भी कार्यवाही कर शके। धर्म के नाम पर वोट मांगने और सांप्रदायिक टिप्पणियां करने वाले मोदी के भाषणों पर चुनाव आयोग की चुप्पी ने सवाल खड़े कर दिए हैं।  

नरेंद्र मोदी और भाजपा ने अब तक अपने चुनाव प्रचार अभियान में धर्म, आस्था, राम मंदिर और राम का कई बार जिक्र किया है और सीधे तौर पर इनके नाम पर लोगों से उन्हें वोट देने के लिए कहा है. हालांकि, निर्वाचन आयोग पूरी तरह इस पर चुप्पी बनाए हुए है ।

एक ओर जहां बीजेपी के धार्मिक चुनाव प्रचार पर चुनाव आयोग खामोश है, वहीं दूसरी ओर अगर विपक्ष की ओर से ऐसा ही कोई विवादित बयान या बात कर दे तो चुनाव आयोग मानो नींद से जाग उठता है।  जिसका ताजा उदाहरण शिव सेना के उद्धव ठाकरे हैं। चुनाव आयोग ने शिवसेना (यूबीटी) के अभियान गीत से 'जय भवानी जय शिवाजी’ और ‘हिंदू हा तुझा धर्म’ शब्द हटाने के लिए नोटिस दिया है।  पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा कि पहले आयोग को पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी चाहिए जिन्होंने कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान ‘बजरंग बली की जय’ और अयोध्या में रामलला के दर्शन के नाम पर वोट मांगा था। 

उन्होंने कहा, ‘उसे (चुनाव आयोग) सबसे पहले पीएम मोदी के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए जिन्होंने कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार करते समय लोगों से ‘जय बजरंग बली’ कहने और ईवीएम पर बटन दबाने के लिए कहा था. अमित शाह (केंद्रीय गृह मंत्री) ने लोगों से कहा था कि, वे अयोध्या में रामलला के दर्शन मुफ्त में कराने के लिए भाजपा को वोट दें.’

याद रहे की, लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Elections 2024) को लेकर राजनीतिक पार्टियों और नेताओं में बयानबाजी का दौर जारी है।  चुनाव आयोग (Elections Commission) को इसकी शिकायतें भी मिल रही हैं।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने रविवार को राजस्थान के बांसवाड़ा में रैली करते हुए कांग्रेस को लेकर एक बयान दिया, जिस पर पार्टी ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है।  कांग्रेस ने सोमवार को ही निर्वाचन आयोग (Election Commission) से आग्रह किया कि वह प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ ठोस कार्रवाई करे, क्योंकि उन्होंने ‘विभाजनकारी और दुर्भावनापूर्ण' बयान देकर आचार संहिता (Code of Conduct) का स्पष्ट रूप से उल्लंघन किया है।  

कौन है राजीव कुमार, अन्य दो चुनाव आयुक्त ने पहले कहा काम किया था ? : निर्वाचन आयोग के मुखिया यानी देश के मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार हैं। उन्होंने 15 मई, 2022 को भारत के पांचवें मुख्य चुनाव आयुक्त का पद संभाला था। इससे पहले वो 1 सितंबर, 2020 को चुनाव आयुक्त बनाए गए थे। राजीव कुमार 1984 बैच के बिहार-झारखंड कैडर के आईएएस हैं। उन्होंने पब्लिक एंटरप्राइजेज सेलेक्शन बोर्ड के चेयरमैन, केंद्रीय वित्त मंत्रालय में सचिव, वित्तीय सेवाओं के सचिव और स्थापना अधिकारी के पद भी संभाले हैं। सब से पहले जब हिमाचल और गुजरात विधान सभा चुनावो की तारीख को लेकर एलान किया गया था तब मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार चर्चा में रहे थे। दोनों राज्य में साथ में चुनाव न करने के उन के फैसले को विपक्ष ने निशाने पर लिया था। EVM सम्बन्धी फरियाद को लेकर विपक्ष लगातार चुनाव आयोग को मिलने का समय मांगता रहा है, फिर भी आयोग विपक्ष से न मिला या उन की किसी भी बात को सूना है। 

अमित शाह के साथ काम कर चुके हैं ज्ञानेश कुमार : ज्ञानेश कुमार केरल कैडर के रिटायर्ड आईएएस ऑफिसर हैं। वो केंद्रीय गृह मंत्रालय में कश्मीर डिविजन के उस वक्त इनचार्ज थे जब केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया था। मोदी सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को आर्टिकल 370 खत्म किया था। 1988 बैच के आईएएस ज्ञानेश कुमार मई, 2022 में सहकारिता मंत्रालय के सचिव बनाए गए। उन्हें संसदीय कार्य मंत्रालय में सचिव पद से ट्रांसफर किया गया था। कुमार ने सहकारिता मंत्रालय में देवेंद्र कुमार सिंह को रिप्लेस किया था। सिंह भी केरल कैडर के ही आईएस थे जिन्हें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का महासचिव बनाया गया था। ज्ञानेश कुमार की सर्विस रिटायरमेंट एज के बाद भी बरकरार रखी गई थी। वो 31 जनवरी, 2024 को रिटायर हुए। ध्यान रहे कि पहले गृह मंत्रालय और फिर सहकारिता मंत्रालय, दोनों मंत्रालयों के सचिव के तौर पर उन्होंने मंत्री अमित शाह के साथ ही काम किया। शाह इन दोनों मंत्रालयों के मंत्री हैं।

कौन हैं सुखबीर संधू, जानिए : सुखबीर संधू 1998 बैच के रिटायर्ड आईएएस ऑफिसर हैं। 2021 में पुष्कर सिंह धामी जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनाए गए तब प्रदेश के मुख्य सचिव के पद पर सुखबीर संधू ही थे। उससे पहले संधू नितिन गडकरी के मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के चेयरमैन और मानव संसाधन मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग में अडिशनल सेक्रेटरी की भूमिका में भी रहे। 

अब सब से बड़ा सवाल ये है की, जिन लोगों ने अधिकारी के रूप में मोदी और अमित शाह के अधीन काम किया हो वह बतौर चुनाव आयुक्त उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकते है ?