Operations Sindoor Modi In Kutch : गुजरात के भुज में मोदी की सभा स्थली को लेकर चर्चा में आए कच्छी किसान धनसुख लिंबानी, जानिए क्या है करोड़ों रुपए की जमीन पूरा मामला

प्रधान मंत्री मोदी जहां कल भुज में लोगो से बात करने वाले है वह भुज की अस्सी करोड़ से भी जयादा की कीमत की विवादित जमीन को लेकर दो पक्षों के बीच जिला न्यायालय और हाईकोर्ट में चल रही है कानूनी लड़ाई, अदालत के पूरे मामले में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश के बावजूद प्रधानमंत्री की सभा को लेकर किये गए प्रशासन के फैसले से हैरानी।

Operations Sindoor Modi In Kutch : गुजरात के भुज में मोदी की सभा स्थली को लेकर चर्चा में आए कच्छी किसान धनसुख लिंबानी, जानिए क्या है करोड़ों रुपए की जमीन पूरा मामला

WND Network.Bhuj (kutch) : वैसे तो जब बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की हो तब केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन द्वारा कोई भी चूक की गुंजाइस नहीं होती।  परन्तु जब से गुजरात के सीमावर्ती जिले कच्छ के भुज में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा स्थली का एलान किया है, तब से कच्छ के एक किसान की बहोत चर्चा होने लगी है। कच्छ जिले के भुज तहसील के मानकुवा गांव के और हाल फिलहाल मस्कत में रहने वाले किसान धनसुख लिंबानी का नाम इस मामले को लेकर काफी चर्चा में आया है। और यह चर्चा इस लिए हो रही है की, जिस जगह भुज में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को भाषण देने जा रहे है वह करोडो रूपये की जमीन धनसुखभाई लिंबानी की है।  यह भूमि विवाद पिछले कई वर्षों से भुज से लेकर उच्च न्यायालय तक की अदालतों में चल रहा है। इतना ही नहीं, कोर्ट ने इस भूमि मामले में यथास्थिति (Status quo) बनाए रखने का भी आदेश दिया है। बावजूद इस के किसके इशारे पर और किसके फायदे के लिए इस विवादित जमीन पर मोदी की रैली आयोजित की गई, यह मुद्दा चर्चा का विषय बन गया है।

दरअसल मामले की शुरुआत काफी सालो पहले हुई है। कच्छ से मस्कत जा चुके इस करोडो रूपये की भूमि के मालिक धनसुख लिम्बानी के उस समय भुज के एक बिल्डर वासुदेव ठक्कर के साथ अच्छे संबंध थे। लेकिन वासुदेव ठक्कर की मृत्यु के बाद इस जमीन को लेकर उनके बेटे निशांत ठक्कर से उनके रिश्ते खराब हो गए। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के खिलाफ अदालतों के साथ-साथ पुलिस और सीआईडी में भी आपराधिक मामले दर्ज कराए हैं। समय के साथ भुज के कुछ प्रमुख लोग भी, जिन में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए कार्यकर पप्पू के नाम से मशहूर राजेन्द्रसिंह जाडेजा से लेकर भाजपा के कई सीनियर लोग भी इस भूमि विवाद में शामिल हो गए। भुज के पप्पू के नाम से मशहूर राजेन्द्रसिंह जाडेजा कभी कांग्रेस का चहेरा हुआ करते थे। अब जब की मामला भुज सिविल कोर्ट से अहमदाबाद उच्च न्यायालय तक पहुंच गया है, तब अचानक से विवादित भूमि पर मोदी की सभा के आयोजन की खबर से भुज समेत पुरे कच्छ के लोग हैरान है।  

पुरे मामले को जानने और समझने की लिए 'वेब न्यूज़ दुनिया' ने कच्छ के कलेक्टर व् जिलाधिकारी IAS आनद पटेल (IAS Anand Patel) का संपर्क किया था।  परन्तु उन से बात न हो पाई थी।  उन को SMS द्वारा भी पुरे मामले को लेकर जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया गया था।  परन्तु यह न्यूज़ रिपोर्ट प्रकाशित होने तक जिलाधिकारी पटेल का कोई भी जवाब नहीं मिला है   

'वेब न्यूज दुनिया' ने जब पूरे मामले की पड़ताल की तो पता चला कि, कच्छ प्रशासन ने जमीन मालिक धनसुख लिंबानी के वकील से संपर्क किया था। जब न्यायालय ने भूमि विवाद में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया हो तब बड़ा सवाल यह है कि किन परिस्थितियों में कच्छ प्रशासन ने यह खेल खेला है। हालांकि जैसे हमने आगे बताया है, कच्छ के जिलाधिकारी IAS आंनद पटेल पुरे मामले में अपने आप को अलग करते हुए कुछ भी बोलने से बच रहे है।

आप को बता दे की, करोड़ों रुपए का यह जमीन मामला कई वर्षों से अदालत में है और विदेश में रहने वाले धनसुखभाई को भारतीय न्याय व्यवस्था पर अटूट विश्वास है। हालांकि, दूसरा पक्ष स्थानीय नेतृत्व और जमीन के कारोबार से जुड़े लोगों की मदद से मुकदमा दर्ज कराकर दबाव बना रहा है।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, स्थानीय पक्षकारों ने राजनीतिक प्रभाव का उपयोग करके इस ज़मीन को चर्चा में लाया गया है।  यह ज़मीन वर्षों से उपेक्षित स्थिति में थी, लेकिन अब इसे साफ़-सफ़ाई और व्यवस्था के साथ नियमित किया जा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि इस प्रकार की योजना से बिल्डर लॉबी में बाज़ार मूल्य फिर से बढ़े और दोनों पक्षों पर समाधान या दबाव बने – इस उद्देश्य से प्रशासन से अपील या समर्थन पाने के लिए पूरी रणनीति बनाई गई है।

एक और बात यह भी सामने आ रही है कि राज्य में जब भी किसी भी योजना के दौरान जब विवाद जैसी स्थिति उत्पन्न होती है, तब स्थानीय नेताओं के इशारे पर ही सरकार या प्रशासन को नीति या नियमों का उल्लंघन करना पड़ता है। ऐसा प्रतीत होता है कि, भुज में मोदी साहब की सभा के समय भी कुछ इसी प्रकार की बात की आशंका जताई जा रही है। हालांकि, इस पूरे विवाद के बीच यह मान लेना कठिन है कि, पीएमओ या प्रधानमंत्री से जुड़े उच्च स्तर के अधिकारियों को इस विवाद की जानकारी न हो। अब देखने वाली बात यह है कि प्रधानमंत्री के कार्यक्रम के बाद इस विवादित ज़मीन के मामले में क्या नया मोड़ आता है? क्या कोर्ट की कार्यवाही जारी रहेगी या कोई समझौता होगा? क्योंकि एक ही ज़मीन के तीन दस्तावेजों वाले इस विवाद में स्थानीय और उच्च न्यायालय में चल रही कार्यवाहियों में आरोप और प्रति-आरोप अत्यंत गंभीर हैं।

मीडिया चुप है : ऐसा नहीं है की यह बात लोगो से और कच्छ गुजरात के मिडिया से छुपी हुई है। पूरा मामला कच्छ से प्रकाशित होने वाले हर एक अखबार को पता है।  परन्तु किस दबाव में या फेवर में यह मिडिया लोगो से यह बात छुपा रहा है यह समझने वाली बात है।  केवल बे-धड़क कहने से या फिर कच्छ का मित्र होने का दावा करने से आप की पत्रकारिता साबित नहीं होती।